आमतौर पर, आंखों की सुरक्षा के लिए भी चश्मे की आवश्यकता पड़ती है। दृष्टि कमजोर होने व उम्र बढ़ने के साथ भी आंखों को चश्मे की जरूरत पड़ती है। कई बार, चश्मे की आवश्यकता आंखों के विभिन्न रोगों में भी पड़ती है। हालांकि, कुछ लोग चश्मे से बचने के लिए कॉटेक्ट लेंस की मदद लेते हैं। हालांकि, चश्मे या लेंस की आवश्यकता अधिक उम्र के लोगों के साथ बच्चों को भी पड़ सकती है। मगर अधिकांश लोगों को चश्मे और लेंस में फर्क, चश्मे और लेंस के फायदे व नुकसान के बारे में पता नहीं होता है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आपके लिए क्या बेहतर है चश्मा या लेंस?
दिल्ली के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. चिराग गुप्ता कहते हैं कि चाहे आप कॉटेक्ट लेंस लगाएं या फिर चश्मा पहनें, यह पूरी तरह से आपकी अपनी पसंद पर निर्भर करता है। इसका फैसला करते समय आप अपने रहन-सहन और बजट को देखते हैं या फिर आप वो काम करते हैं, जिसमें खुद को कंफर्टेबल महसूस करते हैं। कुछ लोग अपने ‘लुक’ को वरीयता देते हैं।
डॉ. चिराग गुप्ता बताते हैं कि कॉन्टेक्ट लेंस या चश्मे में से किसी एक को चुनने से पहले आपको यह समझना जरूरी है कि, दोनों ही एक दूसरे बेहतर नहीं है। आंख से दिखने, प्रयोग में आसानी और आंखों के स्वास्थ्य जैसे पहलूओं के मद्देनजर दोनों के अपने फायदे हैं और अपने नुकसान हैं।
कॉटेक्ट लेंस लगाने के मुकाबले चश्मा लगाने के कुछ फायदे हैं। इनके रखरखाव और सफाई में दिक्कतें कम हैं। इनको पहनने के लिए आपको अपनी आंखों को हाथ नहीं लगाना पड़ता, जिससे संक्रमण का खतरा कम रहता है। कॉन्टेक्ट लेंस खरीदने के मुकाबले चश्मा सस्ता भी होता है और इसे जल्दी-जल्दी बदलना भी नहीं पड़ता।
इसके अलावा चश्मा कई ऐसे काम करता है जो कॉन्टेक्ट लेंस नहीं कर पाते। जैसे, यह आपकी आसानी के मुताबिक आंखों के भीतर जाने वाली रोशनी पर नियंत्रण कर सकता है। विशेषकर फोटोक्रोमेटिक लेंस रात में और घर के अंदर सामान्य रहते हैं जबकि धूप में जाने पर आंख की सुविधा के अनुसार गहरे हो जाते हैं। यद्यपि कुछ कॉन्टेक्ट लेंस भी आंखों में अल्ट्रा वायलेट किरणें जाने से रोकते हैं लेकिन फोटोक्रोमेंटिक ग्लास शत-प्रतिशत परिणाम देते हैं। इतना ही नहीं वे न केवल आंखों के भीतर यूवी किरणें नहीं जाने देते बल्कि आंख के बाहरी हिस्से और पलकों की भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। चश्मा आपके व्यक्तित्व को और विस्तार दे सकता है और फैशन स्टेटमेंट भी बन सकता है।
कॉन्टेक्ट लेंसेज के भी काफी फायदे हैं। यह सीधे आंखों में फिट हो जाते हैं इसलिए विजन का, विशेष रूप से पेरिफेरल विजन को कोई नुकसान नहीं होता। अगर आपने कॉन्टेक्ट लेंस लगाए हैं तो आप निश्चिंत होकर खेलकूद और आउटडोर गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। चश्मे के गिरने और टूट जाने के डर से मुक्त रहेंगे। इतना ही नहीं रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस से आप अपनी आंखों का रंग भी बदल सकते हैं।
अगर आप देखना चाहें कि आपकी आंखों का बदला हुआ रंग कैसा दिखता है तो आप रंगीन कॉन्टेक्ट लेंस लगा सकते हैं। यहां तक कि हैलोवीन और फेंसी ड्रेसजैसे कॉस्ट्यूम के अनुरूप आप स्पेशल इफेक्ट वाले कॉन्टेक्ट लेंस खरीद सकते हैं। कुछ कॉन्टेक्ट लेंस आपके सो जाने पर आपके कॉर्निया को रिशेपकर सकते हैं। ओवरनाइट ओर्थोकेरेटोलॉजी (ओर्थो-के) मायोपिया को अस्थाई रूप से ठीक कर देती है और आप अगले दिन चश्मे या कॉन्टेक्ट लेंस के बिना भी साफ देख सकते हैं।
डॉ. चिराग गुप्ता बताते हैं कि यह एडवांस तकनीक का ही कमाल है कि अधिकतर लोग कॉन्टेक्ट लेंस सफलता से पहन रहे हैं, चाहे वे चश्मा भी पहनते हों। इसलिए आप दोनों में से क्या पहनें और कब, कौन सी चीज पहनें, यह आपकी निजी पसंद होगी। ध्यान रखें कि अगर आप हमेशा कॉन्टेक्ट लेंस ही पहनते हैं तो भी आपके पास एक अप-टू-डेट चश्मा जरूर होना चाहिए ताकि जब कभी आंखों में कोई परेशानी हो या आप अपनी आंखों को ब्रेक देना चाहें तो इसका इस्तेमाल कर सकें।
नोट: यह लेख दिल्ली स्थित शार्प साईट आई हॉस्पिटल्स में रिफ्रैक्टिव सर्जरी जैसे लेसिक, मोतियाबिंद आदि के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डॉक्टर चिराग गुप्ता से हुई बातचीत पर आधारित है।
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