गर्मी और बरसात में नेत्र रोगियों की संख्या बढ़ जाती है। आइए अब गर्मी और बरसात में होने वाली उन समस्याओं और संक्रमणों के बारेमें बात करें जिनके लिए सावधान रहने की जरूरत है।
अब अनलॉक-2 शुरू हो गया है और हमें अपने घर से बाहर निकलने की इजाजत है लेकिन सावधानी और सतर्कता से। एक तरफ कोविड 19 के संक्रमण से बचना है तो दूसरी तरफ तेज धूप और बारिश में आंखों में होने वाली परेशानियों से। इन दिनों आंखों का स्वस्थ रखने के लिए अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। शार्प साईट के सीनियर कंसल्टेंट डा. अनुराग वाही, बताते हैं कि मानसून की नमी हमारी त्वचा को तो नुकसान पहुंचाती ही है साथ ही यह हमारी आंखों पर भी विपरीत प्रभाव डालती है। यह जान लीजिए कि केवल तेज गर्मी ही आंखों को परेशान नहीं करती है बल्कि बारिश के पानी के आंखों में जाने से भी कई प्रकार के इंफेक्शंस हो सकते हैं। सच तो यह है कि आप जब भी आंखों को प्रोटेक्ट किए बिना घर से निकलेंगे तब ही आपकी आंखों में इंफेक्शन होने की संभावना रहेगी। उदाहरण के लिए गर्मी में अल्ट्रावॉयलेट किरणों के संपर्क में आने से मातियाबिंद का तेजी से बढ़ना संभव हो सकता है। इससे ड्राई आंखों की समस्या भी बढ़ सकती है। इसी प्रकारसे मानसून के महीनों में बारिश और नमी से कंजेक्टिवाइटिस जैसे संक्रमण हो सकते हैं। गर्मी और बरसात में नेत्र रोगियों की संख्या बढ़ जाती है। आइए अब गर्मी और बरसात में होने वाली उन समस्याओं और संक्रमणों के बारेमें बात करें जिनके लिए सावधान रहने की जरूरत है।
कंजेक्टिवाइटिस (आँख आना): यह बहुत ही आम संक्रमण है जो मानसून के मौसम में हो जाता है। यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता भी है। यह स्थिति बैक्टिरियाओर वायरस के कारण तो होती ही है लेकिन एक्सपायर्ड कॉस्मेटिक्स, कॉन्टेक्ट लैंस कीसफाई और स्विमिंग पूल में ब्लीच भी इसका कारण बन सकते हैं। कंजेक्टिवाइटिस आमतौर पर छूने से फैलता है इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरीहै कि तौलिए, रूमाल, नैपकिंस, तकिए के खोल आदिएक-दूसरे से अलग रखें। अगर फिर भी आपकी आंखें गुलाबी हो जाती हैं तो परेशान न हों, नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाएं और सही उपचार लें। साथ ही साफ-सफाई का विशेष तौर पर खयाल रखें।
गुहेरी (आँख में फुंसी): यह बीमारी तेल ग्रंथियों के सूख जाने ओर आंख की पलकों की सतह पर बैक्टिरिया के आ जाने पर होती है। इसमें दोनों पलकें लाल होकर सूज जाती हैं और दर्द होता है। इस रोग को रोकने का सबसे सही तरीका आंखों की साफ-सफाई बनाए रखना है।मृत कोशिकाएं हटाने के लिए पलकों को बहुत ही नरमी से साफ करना चाहिए। इसके अलावा गंदे तौलिए, एक्सपायर्ड कॉस्मेटिक्स और गंदे हाथों से बच कर भी इससे बचा जा सकता है।
ड्राई आई (आँखों का सूखापन): गर्मियों में हम घर, ऑफिस या कार में एसी वातावरण में रहते हैं। एसी के कारण बदला हुआ तापमान ड्राई आई समस्या का कारण बन जाता है। परिणामस्वरूप आंखों में जलन, पानी आना, दर्द, लाली जैसी समस्याएंहोने लगती हैं। दरअसल, एसी कमरों में नमी नहीं होती और हवा खुश्क होती है जिससे आंखों का पानी सूखने लगता है और आंखें भी खुश्क हो जाती हैं। अगर इनमें तरलता नहीं होती है तो सूजन ओर संक्रमण होने की भी संभवना ज्यादा हो जाती है।
हालांकि डाइबिटीज, थॉयराइड, विटामिन ए की कमी, अर्थराइटिस, अश्रु ग्रंथि में परेशानी आदि समस्याएं भी ड्राई आई का कारण बन सकती हैं। कारण कुछ भी हो, शोध बताते हैं कि वातावरण के कारण आंखों में एलर्जी पैदा करते हैं और इन समस्याओं से परेशानी और ज्यादा बढ़ जाती है। ड्राई आई की समस्या का समय से उपचार लेना बहुत जरूरी है क्योंकि इससेरोगी में कॉर्निया अल्सर या आंख की गंभीर मुश्किलें पनप सकती हैं। इसके अलावाड्राई आई के रोगी को पढ़ने या देर तक डिजिटल स्क्रीन पर काम करने में भी दिक्कतेंआ सकती है और उसकी रोजमार्रा की जिंदगी प्रभावित हो सकती है।
गर्मियों का मतलब बच्चों के लिए छुट्टियां, समर कैंप्स और काफीदेर तक डिजिटल स्क्रीन को देखना है। लेकिन इस बार देश में कोविड 19 के कारण लगे लॉकडाउनने बच्चों की गतिविधियां सीमित कर दी हैं। फिर भी ऑनलाइन क्लासेज, वीडिया चैट्स, गेमिंग और टीवी शोजको देखने से बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ा है। जिससे उनमें डिजिटल आई स्ट्रेनकी समस्या बढ़ी है। इस स्थिति में उनकी आंख में लाली, जलन और खुश्की होसकती है।
अगर बच्चों की इन गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता तो पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चा अपनी आंखों को 20-30 मिनट के बाद ब्रेक दे या एक घंटे स्क्रीन का प्रयोग करने के बाद 10 मिनट का ब्रेक ले। ब्रेक के दौरान आंखों को हथेली से ढंके या दूर स्थित किसी चीज को देखें। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करें कि बच्चा गैजेट से कम से कम एक फुट की दूरी बनाए, सीधा बैठे, सीमित समय के लिए गैजेट देखे और पूरी नींद ले। लेकिन आंख की किसी भी समस्या के नजर आने पर डॉक्टरको जरूर दिखाएं ओर बच्चे की आंखें चेक करवाएं।
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