अभी दो महीने पहले तक कोविड 19 महामारी की वजह से हम अपने घरों में बंद थे, कोई यात्रा नहीं कर रहे थे, कहीं बाहर नहीं जा रहे थे। लेकिन अब प्रतिबंध कम हुए हैं तो हम बाहर निकलने केलिए बेताब हैं। दोस्तों से मिलने और अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सामान्य करने के लिए आतुर हैं। लॉकडाउन के बाद अब हम सड़कों पर निकलने के लिए तैयार हैं।
यह तो सब जानते हैं कि कड़ी गर्मी और मानसून की नमी हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाती है लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि इनसे आपकी आंखों को भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह जान लीजिए कि केवल तेज गर्मी ही आंखों को परेशान नहीं करती है बल्कि बारिश के पानी के आंखों में जाने से भी कई प्रकार के इंफेक्शंस हो सकते हैं। सच तो यह है कि आप जब भी आंखों को प्रोटेक्ट किए बिना घर से निकलेंगे तब ही आपकी आंखों में इंफेक्शन होने की संभावना रहेगी।
उदाहरण के लिए गर्मी में अल्ट्रावॉयलेट किरणों के संपर्क में आने से मोतियाबिंद का तेजी से बढ़ना संभव हो सकता है। इससे ड्राई आंखों की समस्या भी बढ़ सकती है। इसी प्रकार से मानसून के महीनों में बारिश और नमी से कंजेक्टिवाइटिस जैसे संक्रमण हो सकते हैं। नेत्ररोग विशेषज्ञ भी बताते हैं कि गर्मी ओर बरसात में नेत्रारोगियों की संख्या बढ़ जाती है।
आइए शार्प साइट (ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स) के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक, डॉक्टर अनुराग वाही से जानते हैं गर्मी और बरसात में होने वाली उन समस्याओं और संक्रमणों के बारे में बात करें जिनके लिए सावधान रहने की जरूरत है।
यह बहुत ही आम संक्रमण है जो मानसून के मौसम में हो जाता है। यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता भी है। यह स्थिति बैक्टिरिया ओर वायरस के कारण तो होती ही है लेकिन एक्सपायर्ड कॉस्मेटिक्स, कॉन्टेक्ट लैंस की सफाई और स्विमिंग पूल में ब्लीच भी इसका कारण बन सकते हैं।
कंजेक्टिवाइटिस आमतौर पर छूने से फैलता है इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि तौलिए, रूमाल, नैपकिंस, तकिए के खोल आदि एक-दूसरे से अलग रखें। अगर फिर भी आपकी आंखें गुलाबी हो जाती हैं तो परेशान न हों, नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाएं और सही उपचार लें। साथ ही साफ-सफाई का विशेष तौर पर खयाल रखें।
जब गर्मियां आती हैं तो हम घर, ऑफिस या कार में एसी वातावरण में रहते हैं। एसी के कारण बदला हुआ तापमान ड्राई आई समस्या का कारण बन जाता है। परिणामस्वरूप आंखों में जलन, पानी आना, दर्द, लाली जैसी समस्याएं होने लगती हैं। दरअसल, एसी कमरों में नमी नहीं होती और हवा खुश्क होती है जिससे आंखों का पानी सूखने लगता है और आंखें भी खुश्क हो जाती हैं। अगर इनमें तरलता नहीं होती है तो सूजन ओर संक्रमण होने की भी संभवना ज्यादा हो जाती है।
हालांकि डाइबिटीज, थॉयराइड, विटामिन ए की कमी, अर्थराइटिस, अश्रु ग्रंथि में परेशानी आदि समस्याएं भी ड्राई आई का कारण बन सकती हैं। कारण कुछ भी हो, शोध बताते हैं कि वातावरण के कारण आंखों में एलर्जी पैदा करते हैं ओर इन समस्याओं से परेशानी और ज्यादा बढ़ जाती है।
ड्राई आई की समस्या का समय से उपचार लेना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे रोगी में कॉर्निया अल्सर या आंख की गंभीर मुश्किलें पनप सकती हैं। इसके अलावा ड्राई आई के रोगी को पढ़ने या देर तक डिजिटल स्क्रीन पर काम करने में भी दिक्कतें आ सकती है और उसकी रोजमार्रा की जिंदगी प्रभावित हो सकती है।
गुहेरी को आंख में फुंसी या अन्य कई नामों से पहचाना जाता है। यह लाल रंग की एक छोटी सी गांठ होती है, जो पलकों पर या उनके नीचे विकसित होती है। यह बीमारी तेल ग्रंथियों के सूख जाने ओर आंख की पलकों की सतह पर बैक्टिरिया के आ जाने पर होती है। इसमें दोनों पलकें लाल होकर सूज जाती हैं और दर्द होता है। इस रोग को रोकने का सबसे सही तरीका आंखों की साफ-सफाई बनाए रखना है। मृत कोशिकाएं हटाने के लिए पलकों को बहुत ही नरमी से साफ करना चाहिए। इसके अलावा गंदे तौलिए, एक्सपायर्ड कॉस्मेटिक्स और गंदे हाथों से बच कर भी इससे बचा जा सकता है।
गर्मियों का मतलब बच्चों के लिए छुट्टियां, समर कैंप्स और काफी देर तक डिजिटल स्क्रीन को देखना है। लेकिन इस बार देश में कोविड 19 के कारण लगे लॉकडाउन ने बच्चों की गतिविधियां सीमित कर दी हैं। फिर भी ऑनलाइन क्लासेज, वीडिया चैट्स, गेमिंग और टीवी शोज को देखने से बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ा है। जिससे उनमें डिजिटल आई स्ट्रेन की समस्या बढ़ी है। इस स्थिति में उनकी आंख में लाली, जलन और खुश्की हो सकती है।
अगर बच्चों की इन गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता तो पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चा अपनी आंखों को 20-30 मिनट के बाद ब्रेक दे या एक घंटे स्क्रीन का प्रयोग करने के बाद 10 मिनट का ब्रेक ले। ब्रेक के दौरान आंखों को हथेली से ढंके या दूर स्थित किसी चीज को देखें। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करें कि बच्चा गैजेट से कम से कम एक फुट की दूरी बनाए, सीधा बैठे, सीमित समय के लिए गैजेट देखे और पूरी नींद ले। लेकिन आंख की किसी भी समस्या के नजर आने पर डॉक्टर को जरूर दिखाएं ओर बच्चे की आंखें चेक करवाएं।
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